नई पुस्तकें >> वह लड़की जो मोटरसाइकिल चलाती है वह लड़की जो मोटरसाइकिल चलाती हैअनन्त भटनागर
|
0 |
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
पुरातन की स्मृति और अभाव अक्सर ही कविताओं के प्रेरक कारक होते हैं, या तो हम किसी बीते क्षण को कविता में सम्बोधित करते हैं या फिर किसी भविष्य की कामना हमें कविता में सोचने को प्रेरित करती है। लेकिन इस संग्रह की ज्यादातर कविताएँ वर्तमान को सम्बोधित हैं और आधुनिक सभ्यता के कुछ नए उपादानों को समझने की कोशिश करती हैं। मसलन, मोबाइल फोन, बाजार, सेज के नाम से जाने जानेवाले विशेष आर्थिक क्षेत्र और वह लड़की जो मोटरसाइकिल चलाती है। इस नई दुनिया को कवि बिना किसी पूर्वग्रह के एकदम ताजा निगाह से देखता और समझता है और पाठक को भी अपनी यात्रा में शामिल करता चलता है—‘क्या आप नहीं चौंके थे उस दिन जब आपने पहली बार किसी एक लड़की को मोटरसाइकिल चलाते हुए देखा था ?’ यह दृश्य कवि को एक नए युग का आरम्भ लगता है लेकिन इसके भविष्य को लेकर उसे कुछ शंका भी है—‘क्या शादी के बाद भी चला पाएगी वह मोटरसाइकिल...क्या वह आगे बैठी होगी और पति होगा पीछे सवार ?’
संग्रह का दूसरा खंड ‘उम्र का चालीसवाँ’ बढ़ती आयु के अहसास की कविताओं का है जिसके विषय में खुद कवि का कहना है कि ‘उम्र के इस संक्रमण काल में रचित ये कविताएँ नितान्त निजी जीवन से लेकर सामाजिक स्तर तक बदलते रिश्तों के प्रति प्रतिक्रिया हैं। इन कविताओं में कई विशुद्ध हास्यबोध की रचनाएँ भी हैं, जिन्हें संग्रह में सम्मिलित करने के पीछे मेरी सोच यह है कि हास्य को केवल मंचीय जुमलेबाजी के लिए छोड़ देना हास्यबोध के साथ अन्याय है।’ संक्षिप्त मुहावरे में रची ये कविताएँ हिन्दी कविता-प्रेमियों को निश्चय ही पसन्द आएँगी।
संग्रह का दूसरा खंड ‘उम्र का चालीसवाँ’ बढ़ती आयु के अहसास की कविताओं का है जिसके विषय में खुद कवि का कहना है कि ‘उम्र के इस संक्रमण काल में रचित ये कविताएँ नितान्त निजी जीवन से लेकर सामाजिक स्तर तक बदलते रिश्तों के प्रति प्रतिक्रिया हैं। इन कविताओं में कई विशुद्ध हास्यबोध की रचनाएँ भी हैं, जिन्हें संग्रह में सम्मिलित करने के पीछे मेरी सोच यह है कि हास्य को केवल मंचीय जुमलेबाजी के लिए छोड़ देना हास्यबोध के साथ अन्याय है।’ संक्षिप्त मुहावरे में रची ये कविताएँ हिन्दी कविता-प्रेमियों को निश्चय ही पसन्द आएँगी।
|
लोगों की राय
No reviews for this book